खीर का सम्बन्द अमाशय से है न कि गर्भाशय से

राम के जन्म के संबंध में बाल्मिकी रामायण में उल्लेख है कि राजा दशरथ नपुंशक था तथा निःसंतान था। उनके मित्र रोमपाद ने कहा कि तुम ऋषि श्रृंगी से पुत्रेष्टि यज्ञ कराओ इस यज्ञकुंड से विराट पुरूष का प्रार्दुभाव हुआ उसके हाथ में एक पात्र था, जो खीर से भरा हुआ था, इस खीर को राजा दशरथ ने तीनों रानियों को खिलाया। खीर मुंह होकर अमाशय में गया इस प्रकार खीर का संबंध अमाशय से है न कि गर्भाशय से। जब खीर गर्भाशय में गया ही नहीं तो राम पैदा कैसे हुआ, इस प्रकार कहा जा सकता है कि राम एक काल्पनिक चरित्र है, उसमें आस्था रखना मूर्खता है। जब राम का अस्तित्व ही नहीं तो राम-रावण युद्ध भी एक मिथ्या प्रचार हैं सच्चाई तो यह है कि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष दशमी को सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अंगीकार किया था। इस प्रकार शुक्ल पक्ष दशमी को अशोक विजया दशमी के नाम से जाना जाता है। चूंकि ब्राम्हणवादी व्यवस्था बुद्ध विराधी थी इसलिए एक मनगढंत एव काल्पनिक कथा रचकर अशोक विजयादशमी के स्थान पर दुर्गा विजयादशमी पूजा प्रथा का आरंभ ब्राम्हणवादियों द्वारा किया गया। ब्राम्हणवादी ताकत सुनियोजित ढंग से चीजों का निर्माण करती है और उसे समाज पर थोंप देती है। ब्राम्हणों ने लोगों में आस्था जगाई कि दुर्गा शक्ति का प्रतीक है।
कमजोर एवं रोग ग्रस्त लोगों को दुर्गा शक्ति क्यों नहीं देती है ?लेकिन दलित-पिछड़े शक्ति पाने के लिए दुर्गा की पूजा करते है। हम लोग जानने की कोशिश नहीं करते है कि दुर्गा कौन है ?सारे बहुजन आंख मूंदकर उसकी पूजा करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते है। इसी को झूठी आस्था कहते हैं।
- पेरियार ललई सिंह यादव